*अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस*
*INTERNATIONAL GIRL CHILD DAY*
दुनियाभर में बालिकाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने, उसके सेहतमंद जीवन से लेकर शिक्षा और करियर के लिए मार्ग बनाने के उद्देश्य से हर साल 11 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है। इस दिन महिलाओं को उनके अधिकारों और महिला सशक्तिकरण के प्रति जागरूक किया जाता है। भारत समेत कई देशों में महिलाओं को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक बच्ची के जन्म से लेकर परिवार में उसकी स्थिति, शिक्षा के अधिकार और करियर में महिलाओं के विकास में आने वाला बाधाओं को दूर करने के लिए जागरूकता फैलाना ही अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का उद्देश्य है। आइए जानते हैं कि कब और क्यों हुई अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस को मनाने की शुरुआत, इस दिन का इतिहास और महत्व।
*प्रस्तावना*
1995 में बीजिंग में महिलाओं पर विश्व सम्मेलन में देशों ने सर्वसम्मति से बीजिंग घोषणापत्र और कार्रवाई के लिए मंच को अपनाया – न केवल महिलाओं बल्कि लड़कियों के अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए अब तक का सबसे प्रगतिशील खाका। बीजिंग घोषणापत्र लड़कियों के अधिकारों को विशेष रूप से पुकारने वाला पहला घोषणापत्र है।
19 दिसंबर, 2011 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव 66/170 को पारित कर 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस घोषित किया, ताकि लड़कियों के अधिकारों और दुनिया भर में लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों को मान्यता दी जा सके।
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस बालिकाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने तथा बालिकाओं के सशक्तीकरण और उनके मानवाधिकारों की पूर्ति को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करता है।
किशोरियों को न केवल इन महत्वपूर्ण प्रारंभिक वर्षों के दौरान, बल्कि परिपक्व होने पर भी सुरक्षित, शिक्षित और स्वस्थ जीवन का अधिकार है। यदि किशोरावस्था के दौरान प्रभावी ढंग से समर्थन किया जाए, तो लड़कियों में दुनिया को बदलने की क्षमता है – आज की सशक्त लड़कियों के रूप में और कल की कार्यकर्ता, माँ, उद्यमी, सलाहकार, परिवार की मुखिया और राजनीतिक नेता के रूप में। किशोरियों की शक्ति को साकार करने में निवेश आज उनके अधिकारों को कायम रखता है और एक अधिक न्यायसंगत और समृद्ध भविष्य का वादा करता है, जिसमें आधी मानवता जलवायु परिवर्तन, राजनीतिक संघर्ष, आर्थिक विकास, बीमारी की रोकथाम और वैश्विक स्थिरता की समस्याओं को हल करने में समान भागीदार है।
लड़कियाँ रूढ़िवादिता और बहिष्कार द्वारा उत्पन्न सीमाओं और अवरोधों को तोड़ रही हैं, जिनमें विकलांग बच्चों और हाशिए के समुदायों में रहने वाले बच्चों के लिए निर्देशित सीमाएँ और अवरोध भी शामिल हैं। उद्यमी, नवोन्मेषक और वैश्विक आंदोलनों के सर्जक के रूप में, लड़कियाँ एक ऐसी दुनिया का निर्माण कर रही हैं जो उनके और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रासंगिक है।
सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा और इसके 17 सतत विकास लक्ष्य ( एसडीजी ), जिन्हें 2015 में विश्व नेताओं द्वारा अपनाया गया था, प्रगति के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत करते हैं जो टिकाऊ है और किसी को पीछे नहीं छोड़ता है।
लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को प्राप्त करना 17 लक्ष्यों में से प्रत्येक का अभिन्न अंग है। सभी लक्ष्यों में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को सुनिश्चित करके ही हम न्याय और समावेशन, सभी के लिए काम करने वाली अर्थव्यवस्थाएं और वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमारे साझा पर्यावरण को बनाए रख पाएंगे।
*आप जानते हैं?*
आज भी लगभग 5 में से 1 लड़की निम्न-माध्यमिक विद्यालय की शिक्षा पूरी नहीं कर पा रही है, तथा लगभग 10 में से 4 लड़कियां उच्च-माध्यमिक विद्यालय की शिक्षा पूरी नहीं कर पा रही हैं।
निम्न आय वाले देशों में लगभग 90 प्रतिशत किशोरियां और युवतियां इंटरनेट का उपयोग नहीं करती हैं, जबकि उनके पुरुष साथियों के ऑनलाइन होने की संभावना दोगुनी है।
वैश्विक स्तर पर, 5-14 वर्ष की लड़कियां प्रतिदिन समान आयु के लड़कों की तुलना में अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्यों में 160 मिलियन घंटे अधिक खर्च करती हैं।
किशोरों में एचआईवी संक्रमण के नए मामलों में से 4 में से 3 मामले किशोरियों से संबंधित हैं।
15-19 वर्ष की आयु वाली लगभग 4 में से 1 विवाहित/साथी किशोर लड़की ने अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार अपने अंतरंग साथी से शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है।
कोविड-19 महामारी से पहले भी, अगले दशक में 100 मिलियन लड़कियों के बाल विवाह का खतरा था। और अब अगले दस वर्षों में, कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया भर में 10 मिलियन से अधिक लड़कियों के बाल विवाह का खतरा होगा।
*बालिका दिवस मनाने का उद्देश्य*
इस खास दिन मनाने का मुख्य उद्देश्य नारी शक्ति को बढ़ावा देना। बालिकाओं के जीवन को विकसित करना और लोगों को महिलाओं की चुनौतियों के प्रति जागरूक करना है। इसके साथ ही महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है, ताकि महिलाएं भी देश और समाज के विकास में योगदान दे सकें। उन्हें सम्मान और अधिकार दिलाने के लिए बालिका दिवस के मौके पर कई देशों में कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
*वर्ष 2022 की थीम:*
‘हमारा समय अभी है – हमारे अधिकार, हमारा भविष्य’ (Our Time is now- our rights, our Future)।
*भारत में बालिकाओं की स्थिति:*
परिचय:
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट “भारत में आकस्मिक मृत्यु और आत्महत्या रिपोर्ट 2021” के अनुसार:
कोविड से संबंधित प्रतिबंध के कारण वर्ष 2020 में गिरावट के बाद बच्चों के खिलाफ अपराध महामारी पूर्व के स्तर को पार कर गया।
वर्ष 2021 में 1.49 लाख ऐसे मामले दर्ज किये गए जो वर्ष 2019 के 1.48 लाख से अधिक हैं।
NCRB द्वारा प्रकाशित आँकड़े भारत के पूर्वी राज्यों के मामले में विशेष रूप से गंभीर हैं:
सिक्किम में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की दर सबसे अधिक है, इसके बाद केरल, मेघालय, हरियाणा और मिज़ोरम का स्थान है।
पश्चिम बंगाल और ओडिशा शीर्ष पाँच राज्यों (महाराष्ट्र, एमपी और यूपी के साथ) में शामिल हैं, जो देश भर में बच्चों के खिलाफ किये गए कुल अपराधों का 47.1% है।
वर्ष 2021 में अकेले पश्चिम बंगाल में बच्चों के खिलाफ अपराध के 9,523 मामले दर्ज किये गए।
*बालिकाओं से संबंधित मुद्दे:*
कन्या बाल हत्या और भ्रूण हत्या:
भारत में कन्या भ्रूण हत्या की दर विश्व भर में कन्या भ्रूण हत्या की उच्चतम दरों में से एक है।
कन्या भ्रूण हत्या का कारण पुत्र को वरीयता देना, दहेज प्रथा और उत्तराधिकारी की पितृवंशीय आवश्यकता है।
वर्ष 2011 की जनगणना में 0-6 वर्ष की आयु वर्ग में सबसे कम लिंगानुपात (914) दर्ज किया गया है, जिसमें 3 मिलियन लापता लड़कियाँ शामिल थीं। इनकी संख्या वर्ष 2001 के 78.8 मिलियन की तुलना में वर्ष 2011 में 75.8 मिलियन हो गई।
बाल विवाह:
प्रत्येक वर्ष भारत में कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है, जिसके चलते भारत में बाल वधुओं की संख्या विश्वभर में सबसे अधिक (वैश्विक रूप से कुल संख्या का एक-तिहाई) है। वर्तमान में 15-19 आयु वर्ग की लगभग 16% किशोरियों की शादी हो चुकी है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 5 के अनुसार, बाल विवाह में मामूली गिरावट दर्ज की गई है, जो वर्ष 2015-16 के 27% से घटकर वर्ष 2019-20 में 23% हो गई है।
शिक्षा:
लड़कियाँ घर के कामों में अधिक व्यस्त रहती हैं और कम उम्र में ही स्कूल छोड़ देती हैं।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल में पढ़ रही लड़कियों की तुलना में स्कूल छोड़ चुकी लड़कियों की शादी होने की संभावना 3.4 गुना अधिक होती है या उनकी शादी पहले तय हो चुकी होती है।
*सरकार द्वारा उठाए गए कदम*
बेटी बचाओ बेटी पढाओ: इसे वर्ष 2015 में लिंग चयनात्मक गर्भपात और कम होते बाल लिंगानुपात (वर्ष 2011 में प्रत्येक 1,000 लड़कों पर 918 लड़कियाँ) को संबोधित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
सुकन्या समृद्धि योजना: बालिकाओं के कल्याण को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2015 में यह योजना शुरू की गई। यह माता-पिता को लड़कियों के भविष्य के अध्ययन और विवाह पर होने वाले खर्च के लिये निवेश करने तथा धन एकत्रित करने हेतु प्रोत्साहित करती है।
सीबीएसई उड़ान योजना: यह योजना सीबीएसई द्वारा प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थानों में छात्राओं के कम नामांकन और स्कूली शिक्षा एवं इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं के बीच शैक्षिक अंतराल को दूर करने के लिये शुरू की गई एक परियोजना है।
माध्यमिक शिक्षा के लिये लड़कियों हेतु प्रोत्साहन प्रदान करने की राष्ट्रीय योजना (NSIGSE): यह वर्ष 2008 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य माध्यमिक स्तर पर 14-18 आयु वर्ग में लड़कियों के नामांकन को बढ़ावा देना है, विशेष रूप से ऐसी लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये जिन्होंने आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की है।
किशोरियों हेतु योजना: सरकार किशोर लड़कियों हेतु योजना भी लागू कर रही है, जिसका उद्देश्य किशोरियों (AG) को सुविधा प्रदान करना, शिक्षित करना और सशक्त बनाना है ताकि वे आत्मनिर्भर एवं जागरूक नागरिक बन सकें।