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मैकाले मिनट के नियम और सिद्धांत

                                                       मैकाले मिनट (1835)

मैकाले मिनट की विशेषताएँमै

काले मिनट के गुण

मैकाले मिनट की बिकमियाँ दोष’

 

थॉमस बैविग्टन मैकाले उस समय के गवर्नर ने लार्ड विलियम बेन्द्रिक की काउंसिल का कानूनी सलाहकार बनकर बनकर भारत अंग्रेजी भाषा तथा आया था। भाषा तथा अंग्रेजी साहित्य का विद्धान था। उसके लेखों मैकाले ने उस समय सभी को चकित कर दिया था। उन दिनों प्राच्य – पाश्चात्य विवाद अपना उग्र रूप ले चुका था। विलियम वेन्टिक ने इस विवाद को सुलझाने के लिए मैकाले को बंगाल की ‘लोक शिक्षा समिति’ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। मैकाले ने सर्वप्रथम 1813 के आज्ञापत्र का अध्ययन किया तथा उसके अनुच्छेद 43 को गम्भीरता से समझा। उसके बाद उसने प्राच्यवादियों तथा पाश्चात्य वादियों के लिखित तथ्यों तथा तर्की का अध्ययन किया। उसके बाद मैकाले ने 8 फरवरी 1835 को उनपना विवरण पत्र गवर्नर जनरल की काउंसिल के समक्ष प्रस्तुत किया। इस विवरण पत्र में में काले ने 1013 के आज्ञापत्र के अनुच्छेद 43 की व्याख्या की उसके संबंध में ठगेन सुझाव दिए तथा भारतीय शिक्षा व्यवस्था के संबंध में भी सुझाव दिए ।

मैकाले मिनट की विशेषताएँ

मैकाले ने अपने विवरण पत्र में 1813 के आज्ञा पत्र की व्याख्या करते हुए भारतीय शिक्षा के स्वरूप संबंधी कुछ सुझाव दिए जो कि निम्नवत हैं-

ⅰ) प्राच्चपाश्चात्य विवाद के संबंध में तर्क

ii) शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी

(ii) प्राच्य ज्ञान व साहित्य की शिक्षा निरर्थक

iv) भारतीयों के लिए पाश्चात्य शिक्षा आवश्यक

v) अंग्रेजी संहिता बनाने का प्रयास

vi) निस्यनंदन सिध्दांत की व्यवस्था

प्राच्य-पाश्चात्य विवाद के संबंध मेंतर्क

 

1013 के आज्ञा पत्र में उमुद्दे मुख्य रूप से विवाद का विषय रहे ।

 

आवंटित धनराशि का व्यय कैसे हो?

साहित्य शब्द का अर्थ ?

भारतीय विद्वानों का संबंध कौन-कौन से विद्वानों से है?

 

धनराशि के व्यय की व्याख्या

 

मैकाले ने कहा की धनराशि को खर्च करने के संबंध में कम्पनी पर किसी भी प्रकार का कोई बंधन नहीं है। वह जिस तरह से चाहे उस तरह से धनराशि को व्यय कर सकती है।

साहित्य शब्द की व्याख्या

भारतीय साहित्य शब्द की व्याख्या करते हुए मैकाले ने स्पष्ट किया कि 1813 के चार्टर में उल्लेखित साहित्य शब्द का अर्थ अंग्रेजी में है, न कि संस्कृत अरबी और फारसी के साहित्य से उसने अंग्रेजी साहित्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है. है.. “एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की एक अलमारी भारत के सम्पूर्ण साहित्य के बराबर होगी।

भारतीय विद्वान की व्याख्या

भारतीय विद्वान शब्द की व्याख्या करते हुए मैकाले ने बताया कि भारतीय विद्वान का संबंध अंग्रेजी भाषा के विद्वानों से है न कि भारतीय भाषाओं के मैकाले के अनुसार “भारतीय विद्वान् वह है, जो लॉक के दर्शन और औ मिल्टन की कविता से परिचित हो ।”

शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी

मैकाले ने अंग्रेजी को भारतीय शिक्षा का माध्यम बनाने का सुझाव दिया उनके अनुसार संस्कृत तथा अरबी जनसाधारण की भाँषाएँ नहीं है। भारत के सामान्य लोग ये भाषाएँ नही बोलते । भारत में प्रचलित भाषाओं में साहित्य एंव वैज्ञानिक ज्ञान का अभाव है वे अंग्रेजी भाषा सीखने के इच्छुक हैं। कई भारतीय विद्वान जिनमें से राजा राम मोहन राय प्रमुख है, वे भी अंग्रेजी शिक्षा की मांग कर रहे हैं। मैकाले ने कहा प्राच्च शिक्षा की संख्याओं पर धन व्यय करना मुर्खता है और इसको बंद कर दिया जाए। इसके स्थान पर अंग्रेजी भाषा के माध्यम में शिक्षा प्रदान करने के लिए संस्थाओं का घृष्णन किया जाए।

भारतीयों के लिए पाश्चात्य शिक्षा आवश्यक

मैकाले संस्कृत तथा अरबी साहित्य को नगण्य मानता था तथा पाश्चात्य साहित्य को संसार का सर्वश्रेष्ठ साहित्य मानता था। उन्होंने अपने विवरण पत्र में लिखा था कि भारतीयों को पाश्चात्य साहित्य तथा विज्ञान का ज्ञान अवश्य कराया जाना चाहिए। इसी से भारतीय समाज का उब्दार किया जा सकता है।

अंग्रेजी संहिता बनाने का प्रयास

मैकाले के अनुसार, संस्कृत अरबी और फारसी में लिखे हुए कानूनों की अंग्रेजी में संहिता बननी चाहिए। केवल कानून की जानकारी के लिए संस्कृत, अरबी और फारसी का ज्ञान प्राप्त करना उचित नहीं है। इसके लिए धन व्यय करना व्यर्थ है।

निस्यनंदन सिद्धांत की व्यवस्था

मैकाले ने अपने विवरण पत्र में यह बात स्पष्ट की, कि कम्पनी ी के पास इतना धन नहीं है कि वह भारत में जान शिक्षा की व्यवस्था कर सके । अत: मैकाले ने अपने विवरण पत्र में निस्यनंदन सिद्धांत को अपनाने की वकालत की। निस्यनंदन (filtration) तथा अंग्रेजी संस्कृति की शिक्षा प्रदान कर दी जाए तो वह छन-छन कर निम्न वर्ग तक पहुंच जाएगी। मैकाले का मानना था कि कम्पनी को केवल उच्च वर्ग के लिए ही उच्च शिक्षा की की व्यवस्था करनी चाहिए। इसमें उच्च वर्ग में पाश्चात्य संस्कृति का विकास होगा जिसका प्रभाव धीरे- धीरे निम वर्ग पर भी पड़ेगा तथा इससे कम्पनी को कर्मचारी आसानी से मिल जायेंगे। जो आम जनता के बीच संदेशवाहक का कार्य करेंगें। लार्ड ऑकलैण्ड ने इस सिद्धांत की महत्ता को स्वीकारते हुए इसे तात्कालिक शिक्षा निति का अभिन्न अंग बना दिया। ऑकलैण्ड ने लिखा था.. “सरकार को समाज के उच्च वर्ग को ही शिक्षा प्रदान करनी चाहिए, जिस से सभ्यता छन छन् कर जनता तक पहुंचे।” लेकिन यह सिध्दांत बुरी तरह से विफल रहा।

प्राच्य ज्ञान व साहित्य की शिक्षा निरर्थक

भारतीय साहित्य के बारे में मैकाले ने लिखा कि साहित्य धर्म ग्रन्थ अंधविश्वासों और मूर्खतापूर्ण तथ्यों से भरे हैं। इन्हें पढ़ना लिखना निरर्थक है। भारतीय साहित्य का मजाक उड़ाते हुए मैकाले ने लिखा है… “एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय की साहित्य के अलमारी भारत एक अल बराबर होगी।” के संपूर्ण

संस्कृत के साहित्य पर प्रहार करते हुए

मैकाले ने लिखा कि क्या हम ऐसे साहित्य

और विज्ञान को पढाएंगे जो अत्यंत निम्र

कोटि का है जबकि हम संपूर्ण इतिहास व

दर्शन का ज्ञान कर सकते हैं। इतिहास ऐला

है, जिसमें 77 फिट लम्बे राजाओं का वर्णन

है। भूगोल ऐसा है, जिसमें शीरे तथा मक्खन

का वर्णन है, ज्योतिष ऐना है जिस पर स्कूल

की अंग्रेष बालिकाएँ हैंहंस पड़ेंगी। मैकाले ने अपने विवरण पत्र में सुझाव दिए कि संस्कृत तथा अरबी विद्यालयों पर धन व्यय न किया जाए बाल्क उन्हें तुरंत बंद कर देना चाहिए तथा उनके मुद्रण एव प्रकाशन पर भी रोक लगा देनी चाहिए।

मैकाले मिनट या विवरण पत्र के गुण

• प्राच्य – पाश्चात्य विवाद के विषय में सुझाव

• प्रगतिशील शिक्षा की वकालत

भारत में अंग्रेजी शिक्षा को लाना

• पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के द्वार खोलना

• धार्मिक शिक्षा पर रोक

. भारत में जागरुकता का उदय

• आधुनिक भारतीय शिक्षा की संरचना का शिलान्यास

नई शिक्षा निति की घोषणा

मैकाले मिनट या विवरण पत्र के दोष । कमियाँ

धारा 43 की पक्षतापूर्ण व्याख्या

शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी को बनाना

भारतीय साहित्य का आगमन भारतीय भाषाओं की उपेक्षा

केवल उच्च वर्ग के लिए शिक्षा की व्यवस्था

• निस्वनंदन सिद्धांत से भारत में भेदभाव को बढ़ाना।

भारतीय भाषाओं के विद्यालयों को बंद करना।

• भारतीय साहित्य के मुद्रण को बंद करना

धार्मिक शिक्षा की उपेक्षा करना

e शिक्षा का उद्देश्य बाबू तैयार करना ।

भारत में अंग्रेजी शिक्षा को लाना

 

मैकाले को भारत में अंग्रेजी शिक्षा की शुरुवात का श्रेय दिया जाता है। यह भारतीयों के लिए उस समय बहुत महत्वपूर्ण था। बहुत से भारतीय स्वयं भारत में अंग्रेजी शिक्षा की व्यवस्था, चाहते थे जैसा कि राजा राममोहन राय के पत्र से भी प्रतीत होता होता है, उनके अनुसार भारत में अंग्रेजी शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए इसके अलावा भी भारत में बहुत सी भाषाएँ प्रच‌लित थी किन्ही २ अलग-अलग क्षेत्रों में बस‌ने वाले भारतीयों को भी आपस में बात करने के लिए किसी मध्य भाषा की अत्यंत आवश्यकता थी।

 

मैकाले पहला व्यक्ति था जिसने शिक्षा की आधुनिक संरचना का शिलान्यास किया था। अंग्रेजी भाषा के द्‌वारा, पाश्चात्य ज्ञान विज्ञान से देश में वैज्ञानिक, औद्योगिक और आर्थिक प्रगति का आगमन हुआ। अंग्रेजी शिक्षा में समानता स्वतंत्रता तथा बधुता का पाठ पढ़कर भारतवासियों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न हुई तथा वे स्वतंत्र होने के प्रति जागरुक हुए।

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